Monday, 1 December 2014

तमन्ना

अपनी ग़ुस्ताख़ियों का इतना असर चाहते हैं,
बस इनके बदले तेरी एक नज़र चाहते हैं।

तेरे दामन में सजा के चाँद और तारे,
स्याह रातों में जगमगाता फ़लक चाहते हैं।

तेरी फ़ुरक़त ने दिए हैं जो ज़ख्म-ए-दिल हमको,
वो तेरा मरहम-ए-दीदार महज़ चाहते हैं।

अपनी इबादत का इतना ही सिला माँगते हैं हम,
तेरी बलाएं तमाम अपने सर पे चाहते हैं।

तेरे क़दमों तले आती हो जो ज़मीं हर रोज़,
उसी जगह पे हम अपनी क़ब्र चाहते हैं।

हुए फ़क़ीर तेरी चाहत में "सौरभ" तो क्या,
तुझे ही चाहने का रब से हुनर चाहते हैं।


फ़ुरक़त = separation