हम इस दीवानगी-ए-इश्क़ को छुपाएं कैसे,
बात जो दिल में है वो लब तलक लाएं कैसे।
उनसे मिलते ही आ जाती है रुख़ पर रौनक,
हाल-ए-दिल को बिना अलफ़ाज़ जताएं कैसे।
वो जब भी रु-ब-रु होते हैं तो मिलता है सुक़ून,
ये सुकूं छोड़ के ग़र जाएं तो हम जाएं कैसे।
जब भी होते हैं तनहा, दिल उन्हें देता है सदा,
सदा-ए-दिल को भला जाँ तक पहुँचाएं कैसे।
मुद्दतें हो गयीं हैं ख़्वाब उनके देखे हुए,
नींद वो ले गए हैं, ख़्वाब भी आएं कैसे।
चोट लगती है वहाँ, दिल यहाँ तड़पता है,
"सौरभ" बन कर के मरहम दर्द मिटाएं कैसे।
बात जो दिल में है वो लब तलक लाएं कैसे।
उनसे मिलते ही आ जाती है रुख़ पर रौनक,
हाल-ए-दिल को बिना अलफ़ाज़ जताएं कैसे।
वो जब भी रु-ब-रु होते हैं तो मिलता है सुक़ून,
ये सुकूं छोड़ के ग़र जाएं तो हम जाएं कैसे।
जब भी होते हैं तनहा, दिल उन्हें देता है सदा,
सदा-ए-दिल को भला जाँ तक पहुँचाएं कैसे।
मुद्दतें हो गयीं हैं ख़्वाब उनके देखे हुए,
नींद वो ले गए हैं, ख़्वाब भी आएं कैसे।
चोट लगती है वहाँ, दिल यहाँ तड़पता है,
"सौरभ" बन कर के मरहम दर्द मिटाएं कैसे।

