Monday, 16 June 2014

ये दिल बेचारा रह गया।

हम तुझे ढूंढा किये शाम-ओ-सहर हर ज़ू मगर।
ख़्वाब कल की रात का तेरा नज़ारा दे गया।।

एक तेरे ही सजदे में झुकता है अब ये सर मेरा।

जाने काशी क्या हुई, किस ओर क़ाबा रह गया।।

आईना भी अब तो आईना नहीं लगता सनम।

शक्ल तेरी, अक्स तेरा, क्या हमारा रह गया।।

चांदनी रातें भी अब तो स्याह अमावस हो गयीं।

रू-ब-रू ग़र तू न हो तो क्या नज़ारा रह गया।।

शब-ए-वस्ल पे हम तेरा करते रहे बस इंतज़ार।

"सौरभ" बस तन्हाई का हमको सहारा रह गया।।